तुलसीदास जी का जीवन परिचय

तुलसीदास जी का जीवन परिचय

तुलसीदास जी का जीवन परिचय- 

नाम - तुलसीदास, बचपन का नाम - राम बोला

जन्म- 1532 ई., 1589 विक्रम संवत

स्थान कस्बा राजापुर जिला बांदा (उ.प्र.)

निधन - संवत् 1680

पिता- आत्माराम

माता - हुलसी बाई

पत्नी - रत्नवाली

तुलसीदास जी के जन्म के संबंध में एक बहुत ही चर्चित प्रसंग सुनने को मिलता है की तुलसीदास जन्म के समय 12 माह तक अपनी मां के गर्भ में थे। जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ तो वह काफी हष्ट पुष्ट बालक के रूप में दिखाई दे रहे थे एवं तुलसीदास जी के मुंह में दांत थे। अपने जन्म के साथ ही तुलसीदास ने राम नाम लेना शुरू कर दिया था। जिस कारण तुलसीदास जी के बचपन का नाम “रामबोला” पड़ गया। जन्म की यह सब घटनाएं देख उनके आस पास के रहने वाले लोग बहुत ही आश्चर्य चकित थे। तुलसीदास जी एक बैरागी साधू, हिंदी साहित्य के महान कवि, साहित्यकार एवं दार्शनिक थे। तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में रामभक्ति में लीन रहकर अनेकों ग्रंथों की रचनाएं कीं। तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” एक पुरातन पौराणिक बहुप्रसिद्ध ग्रंथ है जिसे एक महाकव्य के रूप में भी जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की श्री रामचरितमानस को विश्व के सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वां स्थान प्राप्त है।

रचनाएँ -

रामचरित मानस

गीतावली

दोहावली

कवितावली

विनय पत्रिका

पार्वती मंगल

कृष्ण गीतावली

तुलसीदास जी की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गुरु नर सिंह दास जी के आश्रम में हुई थी। जब तुलसीदास जी 7 वर्ष के थे तो उनके माता-पिता ने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा के लिए श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) के आश्रम भेज दिया था।

नर सिंह बाबा जी के आश्रम में रहते हुए तुलसीदास जी ने 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की।

रामबोला के गुरु नर सिंह दास ने ही रामबोला का नाम गोस्वामी तुलसीदास रखा था।

अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद तुलसीदास जी अपने निवास स्थान चित्रकूट वापस आ गए और लोगों राम कथा , महाभारत कथा आदि सुनाने लगे।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अलावा, वाल्मीकि ऋषि, गीतवाली, दोहावली, संस्कृत रामायण आदि काव्यों की रचना की थी। तुलसीदास जी भगवान राम के सच्चे भक्त एवं अनुयायी थे। कुछ लोग मानते हैं की गोस्वामी तुलसीदास जी त्रेतायुग में रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकी के अवतार थे। परन्तु इस संबंध में विद्वानों की राय बंटी हुई है।


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